अपराधों में समझौता करना (पीड़ित के पक्ष से)

1. क्या आपराधिक मामलों में समझौता किया जा सकता है?

हॉं, यह अपराध पर निर्भर है। विधि कुछ निश्चित प्रकार के अपराधों में समझौता करने की अनुमति देती है। यह अपराध सामान्यतः निजी प्रकृति के होते हैं एवं दूसरे अपराध की तुलना में इतने गंभीर नहीं होते। आम तौर पर यदि आप पीड़ित हैं एवं अभियुक्त से समझौता कर लेते हैं, अपराध को कम्पाउण्ड किया जा सकता है।

यदि अपराध इस बाबत् दण्ड प्रक्रिया संहित की सूची में उल्लेखित नहीं है तो उसे नॉन कम्पाउण्डेबल (समझौते के अयोग्य) मानते हैं। यही नियम भारतीय दण्ड संहिता के अलावा अन्य कानूनों के अधीन अपराध पर लागू होते हैं। आमतौर पर यह विशेष अपराध समझौते योग्य नहीं होते, जब तक कि संबंधित विधि में इस बाबत् स्पष्ट प्रावधान हों।

कोई अपराध यदि समझौता अयोग्य हो फिर भी उच्च न्यायालय मामले का समाप्त कर सकता है। इसे निरस्तीकरण कहते हैं। उदाहरणार्थ यदि आप समझौते अयोग्य अपराध संबंधी अभियुक्त से सुलह कर लेते हैं तो उच्च न्यायालय यह विचार सकता है कि एफआईआर को निरस्त करे अथवा नहीं। वैवाहिक अथवा सम्पत्ति संबंधी अपराधों में ऐसी अनुमति मिलने के आसार अधिक हैं। संगीन आपराधिक मामलों में जैसे डकैती, हत्या, दुष्कर्म आदि में उच्च न्यायालय आम तौर पर समझौते की अनुमति नहीं देगा।

2. समझौता कौन कर सकता है?

सामान्यतः पीड़ित सुलह को आरंभ कर सकता है। भारतीय दण्ड संहिता की सूची में उल्लिखित व्यक्ति जो समझौता कर सकता है का उल्लेख है। इन अपराधों में से कुछ अपराधों में समझौता केवल विचारण करने वाले न्यायाधीश की अनुमति से ही हो सकता है।

3. आप अपराध से सुलह कब कर सकते हैं?

समझौता योग्य अपराधों में विचारण के दौरान, दण्ड संबंधी निर्णय लेने से पूर्व कभी भी समझौता किया जा सकता है।

4. यदि अभियुक्त पूर्व में ही अपराध कारित कर चुका है तो क्या समझौता मुमकिन है?

सामान्यतः नहीं। इन परिस्थितियों में दूसरा अपराध समझौते-योग्य नहीं है।

 

यह लेख न्याय द्वारा लिखा गया है. न्याय भारत का पहला निःशुल्क ऑनलाइन संसाधन राज्य और केन्द्रीय क़ानून के लिए. समझिये सरल भाषा मैं I