यह लेख किस विषय के बारे मैं है?
महिलाओं के प्रति हिंसा एक बहु-आयामी मुद्दा है जिसके – सामाजिक,निजी, सार्वजानिक और लैंगिक पहलू हैं l एक पहलू से निपटें तो दूसरा पहलू नज़र आने लगता हैl घरेलू हिंसा महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा का एक जटिल और घिनौना स्वरूप हैl
घरेलू हिंसा की घटनाएं कितनी व्यापक हैं, यह तय कर पाना मुश्किल हैl यह एक ऐसा अपराध है जो अकसर छुपाया जाता है, जिसकी रिपोर्ट कम दर्ज़ की जाती है, और कई बार तो इसे नकार दिया जाता हैl निजी रिश्तों में घरेलू हिंसा की घटना को स्वीकार करने को अकसर रिश्तों के चरमराने से जोड़ कर देखा जाता है। समाज के स्तर पर घरेलू हिंसा की हक़ीक़त को स्वीकार करने से यह माना जाता है कि विवाह और परिवार जैसे स्थापित सामाजिक ढाँचों में महिलाओं की ख़राब स्थिति को भी स्वीकार करना पड़ेगाl इन सबके बावज़ूद भी घरेलू हिंसा के जितने केस रिपोर्ट होते हैं, वे आँकड़े चौंकाने वाले हैंlभारत में हर पाँच मिनट पर घरेलू हिंसा की एक घटना रिपोर्ट की जाती हैl
सन् २००५ में संसद में एक नया कानून, ‘घरेलु हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम’पारित किया गयाl इस क़ानून में कई विशेषताएं हैं- इसमें ‘घरेलू हिंसा’ की परिभाषा में विस्तार किया गया और पत्नी के साथ उन सभी महिलाओं को इसके दायरे में लाया गया जो किसी भी प्रकार के घरेलू नातेदारी या सम्बंध में हैं, जैसे बहन, बेटी और माँl
चलिए देखते हैं की यह अधिनियम महिलाओं के अधिकारों को कैसे संरक्षित करता हैl
कानून में घरेलू हिंसा की क्या परिभाषा है?
इस क़ानून के तहत घरेलू हिंसा के दायरे में अनेक प्रकार की हिंसा और दुर्व्यवहार आते हैं। किसी भी घरेलू सम्बंध या नातेदारी में किसी प्रकार का व्यवहार, आचरण या बर्ताव जिससे (१) आपके स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन, या किसी अंग को कोई क्षति पहुँचती है, या (२) मानसिक या शारीरिक हानि होती है, घरेलू हिंसा है।
इसके अलावा घरेलू सम्बन्धों या नातेदारी में, किसी भी प्रकार का
- शारीरिक दुरुपयोग (जैसे मार-पीट करना, थप्पड़ मारना, दाँत काटना, ठोकर मारना, लात मारना इत्यादि),
- लैंगिक शोषण (जैसे बलात्कार अथवा बलपूर्वक बनाए गए शारीरिक सम्बंध, अश्लील साहित्य या सामग्री देखने के लिए मजबूर करना, अपमानित करने के दृष्टिकोण से किया गया लैंगिक व्यवहार, और बालकों के साथ लैंगिक दुर्व्यवहार),
- मौखिक और भावनात्मक हिंसा ( जैसे अपमानित करना, गालियाँ देना, चरित्र और आचरण पर आरोप लगाना, लड़का न होने पर प्रताड़ित करना, दहेज के नाम पर प्रताड़ित करना, नौकरी न करने या छोड़ने के लिए मजबूर करना, आपको अपने मन से विवाह न करने देना या किसी व्यक्ति विशेष से विवाह के लिए मजबूर करना, आत्महत्या की धमकी देना इत्यादि),
- आर्थिक हिंसा ( जैसे आपको या आपके बच्चे को अपनी देखभाल के लिए धन और संसाधन न देना, आपको अपना रोज़गार न करने देना, या उसमें रुकावट डालना, आपकी आय, वेतन इत्यादि आपसे ले लेना, घर से बाहर निकाल देना इत्यादि), भी घरेलू हिंसा है।
घरेलू हिंसा की परिभाषा के दायरे में आने के लिए ज़रूरी नहीं कि कुछ किया ही जाए, कुछ परिस्थितियों में घरेलू सम्बन्धों में कुछ नहीं करना भी (चूक) जिससे किसी व्यक्ति के जीवन और कल्याण को चोट पहुंची हो, घरेलू हिंसा कहलाएगा; उदाहरण के तौर पर, घर का खर्च न उठाना, बच्चों की परवरिश हेतु धन न देना, आर्थिक शोषण माना जाएगा l
व्यथित व्यक्ति कौन है?
इस क़ानून के पूरे लाभ को लेने के लिए यह समझना ज़रूरी है कि ‘व्यथित व्यक्ति’ अथवा पीड़ित कौन है। यदि आप एक महिला हैं और कोई व्यक्ति (जिसके साथ आप घरेलू नातेदारी में हैं) आपके प्रति दुर्व्यवहार करता है तो आप इस अधिनयम के तहत पीड़ित या ‘व्यथित व्यक्ति’ हैंlचूँकि इस कानून का उद्देश्य महिलाओं को घरेलू नातेदारी से उपजे दुर्व्यवहार से संरक्षित करना है, इसलिए यह समझना भी ज़रूरी है की घरेलू नातेदारी या सम्बंध क्या हैं और कैसे हो सकते हैं? ‘घरेलू नातेदारी’ का आशय किन्हीं दो व्यक्तियों के बीच के उन सम्बन्धों से है, जिसमें वे या तो साझी गृहस्थी में एक साथ रहते हैं या पहले कभी रह चुके हैं। इसमें निम्न सम्बंध शामिल हो सकते हैं:
- रक्तजनितसम्बन्ध (जैसे माँ- बेटा, पिता- पुत्री, भाई- बहन, इत्यादि)
- विवाहजनितसम्बन्ध(जैसेपति-पत्नी,सास-बहू,ससुर-बहू,देवर-भाभी,ननद परिवार, विधवाओं केसम्बन्धया विधवा के परिवार के अन्य सदस्यों सेसम्बन्ध)
- दत्तकग्रहण/गोदलेने से उपजे सम्बन्ध(जैसेगोदलीहुईबेटीऔरपिता)
- शादी जैसे रिश्ते (जैसे लिव-इन सम्बन्ध,कानूनी तौर पर अमान्य विवाह (उदाहरण के लिए पति ने दूसरी बार शादी की है,अथवापति और पत्नी रक्त आदि से संबंधित हैं और विवाह इस कारण अवैध है))
(घरेलू नातेदारी के दायरे में आने के लिए ज़रूरी नहीं कि दो व्यक्ति वर्तमान में किसी साझा घर में रह रहे हों;मसलनयदि पति ने पत्नी को अपने घर से निकाल दियातो यह भी एक घरेलू नातेदारी के दायरे में आएगा। )
किससे संपर्क करें?
पीड़ित के रूप में आप इस कानून के तहत ‘संरक्षण अधिकारी’ या ‘सेवा प्रदाता’ से संपर्क कर सकती हैं। पीड़ित के लिए एक ‘संरक्षण अधिकारी’ संपर्क का पहला बिंदु है।संरक्षण अधिकारी मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही शुरू करने और एक सुरक्षित आश्रय या चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराने में मदद कर सकते हैं।प्रत्येक राज्य सरकार अपने राज्य में ‘संरक्षण अधिकारी’ नियुक्त करती हैl ‘सेवा प्रदाता’ एक ऐसा संगठन है जो महिलाओं की सहायता करने के लिए काम करता है और इस कानून के तहत पंजीकृत है lपीड़ित सेवा प्रदाता से, उसकी शिकायत दर्ज कराने अथवा चिकित्सा सहायता प्राप्त कराने अथवा रहने के लिए एक सुरक्षित स्थान प्राप्त कराने हेतु संपर्क कर सकती हैlभारत में सभी पंजीकृत सुरक्षा अधिकारियों और सेवा प्रदाताओं का एक डेटाबेस यहाँ उपलब्धहै।सीधे पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट से भी संपर्क किया जा सकता हैl आप मजिस्ट्रेट – फर्स्ट क्लास या मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट से भी संपर्क कर सकती हैं, किंतु किस क्षेत्र के मैजिस्ट्रेट से सम्पर्क करना है यह आपके और प्रतिवादी के निवास स्थान पर निर्भर करता है l १० लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में अमूमन मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट से संपर्क करने की आवश्यकता हो सकती हैl
घरेलु हिंसा के मामले में कौन शिकायत दर्ज करा सकता है?
पीड़ित खुद शिकायत कर सकती हैl अगर आप पीड़ित नहीं हैं तो भी आप संरक्षण अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं। कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसे किसी कारण से लगता है कि घरेलू हिंसा की कोई घटना घटित हुई है या हो रही है या जिसे ऐसा अंदेशा भी है की ऐसी घटना घटित हो सकती है, वह संरक्षण अधिकारी को सूचित कर सकता है l यदि आपने सद्भावना में यह काम किया है तो जानकारी की पुष्टि न होने पर भी आपके खिलाफ कार्यवाही नहीं की जाएगीl
सुरक्षा अधिकारी के अलावा पीड़ित ‘सेवा प्रदाता’ से भी संपर्क कर सकती है, सेवा प्रदाता फिर शिकायत दर्ज कर, ‘घरेलू हिंसा घटना रिपोर्ट’ बना कर मजिस्ट्रेट और संरक्षण अधिकारी को सूचित करता हैl
व्यथित व्यक्ति के अधिकार
इस अधिनियम को लागू करने की ज़िम्मेदारी जिन अधिकारियों पर है, उनके इस कानून के तहत कुछ कर्तव्य हैं जैसे- जब किसी पुलिस अधिकारी, संरक्षण अधिकारी, सेवा प्रदाता या मजिस्ट्रेट को घरेलू हिंसा की घटना के बारे में पता चलता है, तो उन्हें पीड़ित को निम्न अधिकारों के बारे में सूचित करना है:
- पीड़ित इस कानून के तहत किसी भी राहत के लिए आवेदन कर सकती है जैसे कि – संरक्षण आदेश,आर्थिक राहत,बच्चों के अस्थाई संरक्षण (कस्टडी) का आदेश,निवास आदेश या मुआवजे का आदेश
- पीड़ित आधिकारिक सेवा प्रदाताओं की सहायता ले सकती है
- पीड़ित संरक्षण अधिकारी से संपर्क कर सकती है
- पीड़ित निशुल्क क़ानूनी सहायता की मांग कर सकती है
- पीड़ित भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत क्रिमिनल याचिका भी दाखिल कर सकती है, इसके तहत प्रतिवादी को तीन साल तक की जेल हो सकती है, इसके तहत पीड़ित को गंभीर शोषण सिद्ध करने की आवश्यकता हैl
इसके अलावा,राज्य द्वारा निर्देशित आश्रय गृहों और अस्पतालों की ज़िम्मेदारी है कि उन सभी पीड़ितों को रहने के लिए एक सुरक्षित स्थान और चिकित्सा सहायता प्रदान करे जो उनके पास पहुंचते हैं। पीड़ित सेवा प्रदाता या संरक्षण अधिकारी के माध्यम से इन्हें संपर्क कर सकती हैl
केस दर्ज कराने पर अदालत से क्या अपेक्षा कर सकते हैं?
यदि आप अपनी समस्याओं का स्थायी समाधान चाहते हैं,तो आप अदालत में जा सकते हैं।इस अधिनियम के तहत ज़िम्मेदार न्यायाधीशों को’मजिस्ट्रेट्स’कहा जाता है।
पीड़ित को स्वयं आवेदन करने की ज़रुरत नहीं है, संरक्षण अधिकारी या सेवा प्रदाता के माध्यम से ऐसा किया जा सकता है lज़रूरी है कि मजिस्ट्रेट संरक्षण अधिकारी या सेवा प्रदाता द्वारा दर्ज की गयी पहली शिकायत के तथ्यों को ध्यान में रखेंl
इस अधिनियम के तहत शिकायत के अलावा पीड़ित अदालत में सिविल केस भी दाखिल कर सकती है। यदि पीड़ित सिविल केस भी दाखिल करती है और उसे घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कोई राशि दी गयी है तो मजिस्ट्रेट यह राशि सिविल केस में तय राशि से घटा देगा।
मजिस्ट्रेट के ऊपर आवेदन मिलने के तीन दिन के अन्दर केस पर कार्यवाही शुरू करने की ज़िम्मेदारी हैl केस शुरू होने के पश्चात, मजिस्ट्रेट को अधिकतम ६० दिन के भीतर केस का निवारण करने की कोशिश करनी हैl
इस कानून बे बारे मैं अधिक जानकारी के लिए यह सरल स्पष्टीकरण पढ़ें
यह लेख न्याय द्वारा लिखा गया है. न्याय भारत का पहला निःशुल्क ऑनलाइन संसाधन राज्य और केन्द्रीय क़ानून के लिए. समझिये सरल भाषा मैं I